यह सही है कि उक्त आशय की वार्ता (अनुलिपि) तात्विक साक्ष्य नहीं होती है लेकिन इसे अभिलेख पर उपलब्ध दूसरी साक्ष्य के समर्थन में पढ़ा जा सकता है।
2.
(वही-४६३) आयड़ की संस्कृति के कालानुक्रम का यदि अध्ययन किया जाय तो उपलब्ध साक्ष्यों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-प्रथम में वे प्रमाण जिन्हें पुरा तात्विक साक्ष्य कर सकते हैं।
3.
(वही-४ ६ ३) आयड़ की संस्कृति के कालानुक्रम का यदि अध्ययन किया जाय तो उपलब्ध साक्ष्यों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-प्रथम में वे प्रमाण जिन्हें पुरा तात्विक साक्ष्य कर सकते हैं।
4.
यह सही है कि उपर्युक्त आशय की रिपोर्ट तात्विक साक्ष्य की परिधि में नहीं आती है और इसके आधार पर अभियोग दर्ज करके कानून को गति में लाया जाता है जो सम्पूर्ण मामला का आधार होती है।
5.
वैसे भी इसका उक्त आशय का पूर्व कथन इस मामला में तात्विक साक्ष्य नहीं हो सकती हैं और ऐसे पूर्व कथन भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 के अधीन साक्षी की विश्वसनीयता परखने के लिये प्रतिपरीक्षा के रूप में प्रयुक्त किये जाते है।
6.
यह करार सभी साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना मुश्किल कार्य होता है किन्तु ऐसे तात्विक साक्ष्य होना चाहिए जिससे षडयन्त्रकारियों के मध्य आपस में सम्बन्ध की स्थापना हो सके तथा 2000 / 40/ए. सी. सी. 129 कृपा रंजन प्रसाद वर्मा बनाम स्टेट आफ बिहार की विधि व्यवस्था प्रस्तुत की गयी।